गणेश चतुर्थी: अगले 10 दिन बप्पा की आराधना में व्यस्त रहेगा UP (Pics)

Edited By ,Updated: 05 Sep, 2016 12:54 PM

ganesh chaturthi ganeshotsava worship

‘गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ’ की धूम से पूरा उत्तर प्रदेश आज से 10 दिनों तक चलने वाले गणेशोत्सव के रसरंग में लीन हो जाएगा।

लखनऊ: ‘गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ’ की धूम से पूरा उत्तर प्रदेश आज से 10 दिनों तक चलने वाले गणेशोत्सव के रसरंग में लीन हो जाएगा। गणेशोत्सव की तैयारियां पूरी कर ली गई है केवल पंडालों में उनकी मूर्ति को स्थापित करना भर रह गया है।

पूर्वी उत्तर प्रदेश में गोरखपुर,बस्ती,बलिया,गोण्डा,बनारस, मिर्जापुर, इलाहाबाद आदि स्थानों के साथ पश्चिमी उततर प्रदेश में भी गणपति बप्पा की बयार बह रही है। लोगों ने गणपति बप्पा की मूर्ति घरों में भी स्थापित किया है और 10 दिनों तक उनका भव्य पूजा अर्चना किया जाएगा। अंतिम दिन पंडालों से मूर्ति को ढोल नगाडों के साथ आस पास की नदियों में विसर्जित किया जाता है। महाराष्ट्र में जिस धूमधाम से इनकी स्थापना होती है उसी धूम धाम से इनका विसर्जन भी किया जाता है।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में सैकडों गणपति बप्पा के पण्डाल सजे हैं। गणपति की स्थापना के लिए लोग मूर्तियों की खरीददारी कर चुके हैं। महगांई की मार मूर्तियों पर दिखाई पड रही है। पंडालों में सजने वाली बडी मूर्तियां 50 हजार से अधिक है। लेकिन घरों में स्थापित होने वाली मिट्टी से तैयार मूर्तियों की कीमत पिछले साल की तुलना में मंहगी हो गई है। लाटूश रोड, अमीनाबाद, त्रिवेणी नगर और आई टी चौराहे के मूर्तिकारों का कहना है कि मिट्टी की सुलभता समाप्त हो गई। पहले मिट्टी आसपास के खेतों से आसानी मिल जाती थी। उसके मूल्य बहुत कम ही देने पडते थे लेकिन अब मिट्टी मंहगे दामों पर खरीदना पडता है।

उन्होंने बताया कि जो मिट्टी पहले 100 या 150 रूपए ट्राली मिलती थी अब बढ़कर 500 रूपया पहु्ंच गई है। मजबूरी में हमें भी ऊंचे मूल्यों पर ही बेचना पडता है। उस पर पूरे परिवार की मेहनत। उन्होंने बताया कि इन कामों में पूरे परिवार का योगदान रहता है। त्रिवेणीनगर के मूर्ति बनाने वाले हरसुख लाल का कहना है कि आप लोग मूर्ति को एक समय के बाद विसर्जित कर देते हैं। लेकिन एक मूर्तिकार किसी भी मूर्ति को आकार देते समय उसमें सजीवता प्रदान करने का प्रास करता है। रंगों से उन्हें इस प्रकार सजाते हैं जिससे वह जीवतं प्रतीत होने लगती है।

उन्होंने बताया कि पहले जो मूर्ति बाजार में 10 से 25 रूपए में बिकती थी उसे मंहगाई के कारण 50 से 100 रूपए में बेचनी पडती है। छोटी मूर्ति 20 रूपए से 50 रूपए में बेचना पड़ रहा है। लोगों में उत्साह पहले से अधिक है लेकिन मूर्तियों की बिक्री कम है। अमीनाबाद के लखनपाल ने बताया कि बाजार में चीन की कलात्मक मूर्तियों ने देशी बाजारों पर कुठाराघात किया है। उन्होंने बताया कि हिन्दुओं के किसी भी त्यौहार होली, दिपावली गणेशोत्सव आदि पर बाजार में एक से बढ़कर कलात्मक चीजें मिलने लगती है। वहां की निर्मित चीजें सस्ती और भडकीली होती है जिसकी तुलना देशी चीजों का बाजार गिरता जा रहा है। आज हिन्दुस्तान के बाजारों में चाइना का माल भरा पड़ा है।

पहले गणेश पूजा परिवार तक ही सीमित थी लेकिन लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक द्वारा 1893 में शुरू की गई गणेशोत्सव को जो स्वरूप दिया उससे गणेश राष्ट्रीय एकता के प्रतीक बन गए। यह देश के साथ दुनिया के कई देशों में फैल चुका है। गणेशजी के जन्म को लेकर अनेक मत हैं लेकिन वह तिथि चतुर्थी ही थी, इस पर कोई विवाद नहीं है। गणेश चतुर्थी से शुरू होकर अनन्त चतुर्दशी (अनंत चौदस) तक चलने वाला 10 दिवसीय गणेशोत्सव मनाया जाता है। यह उत्सव, हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास की चतुर्थी से चतुर्दशी तक 10 दिनों तक चलता है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी भी कहते हैं।

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